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संज्ञेय अपराधों के निवारण हेतु पुलिस की शक्तियां (CrPC-149)

दण्ड प्रकिया संहिता, 1973 की धारा 149 मे पुलिस व्दारा संज्ञेय अपराधों के निवारण के बारे में बताया गया है । अपराध कारित किये जाने से पहले ही उसकी रोकथाम कर दिया जाना एक महत्वपूर्ण बात है, क्योंकि इससे जहां अपार धनहानि को रोका जा सकेगा, वही समाज मे शान्ति एवंम् व्यवस्था भी बनी रहेगी । यही कारण है कि अपराधों का निवारण करने के लिये पुलिस को अनेक शक्तियां प्रदत्त की गयी है ।

संज्ञेय अपराधों को रोकने अथवा समाज मे शान्ति बनाये रखने हेतु प्रत्येक पुलिस अधिकारी को यह शक्ति प्रदान की गयी है कि वह संज्ञेय अपराधों को पूर्ण रूप से रोकने मे सक्षम हो ।

वह ऐसे जघन्य अपराध जो अपराधी व्दारा कारित करने से पहले अथवा तुरन्त बाद पुलिस अधिकारी व्दारा बिना किसी वारन्ट के भी उन्हे किसी भी जगह से किसी भी समय गिरफ्तार करने की शक्ति प्रदान की गयी है ।
प्रमुख संज्ञेय अपराध यह निम्नलिखित है, जिनके आधार पर पुलिस अधिकारी व्दार बिना किसी वारन्ट के गिरफ्तार किया जा सकता है-

  • देशद्रोह
  • घातक आयुधों (हथियारों) से लैस होकर अपराध करना
  • लोकसेवक द्वारा रिश्वत मामला
  • बलात्कार
  • हत्या
  • लोकसेवक नहीं होने पर गलत तरीके से स्वयं को लोकसेवक दर्शाकर विधि विरुद्ध कार्य करना। जनता को ऐसा आभास हो कि संबंधित व्यक्ति लोकसेवक है ।
  • विधि विरुद्ध जमाव। योजना बनाकर गैर कानूनी कार्य करना। सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना।

पुलिस अधिकारी से यह अपेक्षा की जाती है कि वह पूरी क्षमता एवंम् योग्यता अपराधों का निवारण करे तथा ऐसे अपराधों की रोकथाम के लिये उसमें हस्तक्षेप करे । अपराधों के निवारण हेतु पुलिस अधिकारी को संहिता के साथ-साथ पुलिस अधिनियम के अन्तर्गत भी सशक्त किया गया है । 

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