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सीआरपीसी की धारा 106 | दोषसिद्धि पर परिशान्ति कायम रखने के लिए प्रतिभूति | CrPC Section- 106 in hindi| Security for keeping the peace on conviction.

नमस्कार दोस्तों, आज हम आपके लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 106 के बारे में पूर्ण जानकारी देंगे। क्या कहती है दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 106 कब लागू होती है, यह भी इस लेख के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।

धारा 106 का विवरण

दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) में धारा 106 के अन्तर्गत जब न्यायालय किसी अपराध के लिए या किसी ऐसे अपराध के दुष्प्रेरण के लिए सिद्धदोष ठहराता है और उसको यह राय है कि यह आवश्यक है कि परिशान्ति कायम रखने के लिए ऐसे व्यक्ति से प्रतिभूति ली जाए, तब न्यायालय ऐसे व्यक्ति को दण्डादेश देते समय उसे आदेश दे सकता है कि वह तीन वर्ष से अनधिक इतनी अवधि के लिए, जितनी वह ठीक समझे, परिशान्ति कायम रखने के लिए, प्रतिभुओं सहित या रहित, बन्धपत्र निष्पादित करे, तो वह धारा 106 के अंतर्गत उस न्यायालय को यह शक्ति होती है कि अगर चाहे तो, किसी मामले में दोषसिद्धि पर परिशान्ति कायम रखने के लिए प्रतिभूति ले सकते है।

जब न्यायालय किसी मामले में किसी व्यक्ति पर दोषसिद्धि ठहराती है, तो न्यायालय के मजिस्ट्रेट को यह शक्ति होती है कि वह उस व्यक्ति से दोषसिद्धि पर परिशान्ति कायम रखने के लिए प्रतिभूति ले सकते है CrPC की धारा 106 न्यायालय में दोषसिद्धि पर परिशान्ति कायम रखने के लिए प्रतिभूति को परिभाषित करती है।

सीआरपीसी की धारा 106 के अनुसार

दोषसिद्धि पर परिशान्ति कायम रखने के लिए प्रतिभूति-

(1) जब सेशन न्यायालय या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट का न्यायालय किसी व्यक्ति को उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट अपराध में से किसी अपराध के लिए या किसी ऐसे अपराध के दुष्प्रेरण के लिए सिद्धदोष ठहराता है और उसको यह राय है कि यह आवश्यक है कि परिशान्ति कायम रखने के लिए ऐसे व्यक्ति से प्रतिभूति ली जाए, तब न्यायालय ऐसे व्यक्ति को दण्डादेश देते समय उसे आदेश दे सकता है कि वह तीन वर्ष से अनधिक इतनी अवधि के लिए, जितनी वह ठीक समझे, परिशान्ति कायम रखने के लिए, प्रतिभुओं सहित या रहित, बन्धपत्र निष्पादित करे।
(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट अपराध निम्नलिखित हैं-
(क) भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) के अध्याय 8 के अधीन दण्डनीय कोई अपराध जो धारा 153क या धारा 153ख या धारा 154 के अधीन दण्डनीय अपराध से भिन्न है;
(ख) कोई ऐसा अपराध जो, या जिसके अन्तर्गत हमला आपराधिक बल का प्रयोग या रिष्टि करना;
(ग) आपराधिक अभित्रास का कोई अपराध;
(घ) कोई अन्य अपराध, जिससे परिशान्ति भंग हुई है या जिससे परिशान्ति भंग आशयित है, या जिसके बारे में ज्ञात था कि उससे परिशान्ति भंग सम्भाव्य है।
(3) यदि दोषसिद्धि अपील पर या अन्यथा अपास्त कर दी जाती है तो वह बन्धपत्र, जो ऐसे निष्पादित किया गया था, शून्य हो जाएगा।
(4) इस धारा के अधीन आदेश अपील न्यायालय द्वारा या किसी न्यायालय द्वारा भी, जब वह पुनरीक्षण की अपनी शक्तियों का प्रयोग कर रहा हो, किया जा सकेगा।

Security for keeping the peace on conviction-
(1) When a Court of Session or Court of a Magistrate of the first class convicts a person of any of the offences specified in sub-section (2) or of abetting any such offence and is of opinion that it is necessary to take security from such person for keeping the peace, the Court may, at the time of passing sentence on such person, order him to execute a bond, with or without sureties, for keeping the peace for such period, not exceeding three years, as it thinks fit.
(2) The offences referred to in sub-section (1) are-
(a) any offence punishable under Chapter VIII of the Indian Penal Code (45 of 1860), other than an offence punishable under Section 153-A or Section 153-B or Section 154 thereof;
(b) any offence which consists of, or includes, assault or using criminal force or committing mischief;
(c) any offence of criminal intimidation;
(d) any other offence which caused or was intended or known to be likely to cause, a breach of the peace.
(3) If the conviction is set aside on appeal or otherwise, the bond so executed shall
become void.
(4) An order under this section may also be made by an Appellate Court or by a Court when exercising its powers of revision.

हमारा प्रयास सीआरपीसी की धारा 106 की पूर्ण जानकारी, आप तक प्रदान करने का है, उम्मीद है कि उपरोक्त लेख से आपको संतुष्ट जानकारी प्राप्त हुई होगी, फिर भी अगर आपके मन में कोई सवाल हो, तो आप कॉमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके पूछ सकते है।

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