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Prohibited Marriage (निषिद्ध विवाह)

Void & Voidable Marriage

हिन्दू विवाह अधिनियम के अन्तर्गत शून्य विवाह एवंम् शून्यकरणीय विवाह के अन्तर्गत धारा-11 एवंम् 12 के अन्तर्गत परिभाषित किया गया है ।

शून्य विवाह (Void marriages)- एक शून्य विवाह एक विवाह है जो उस क्षेत्राधिकार के कानूनों के तहत गैरकानूनी या अमान्य है जहां इसे दर्ज किया गया है। एक शून्य विवाह वह है जो शुरू से ही शून्य और अमान्य है। यह ऐसा है जैसे कि विवाह कभी भी अस्तित्व में नहीं था और इसे समाप्त करने के लिए कोई औपचारिकता की आवश्यकता नहीं है।

शून्य विवाहों के बच्चों को उनके माता-पिता की वैध संतान माना जाता है, यदि विवाह की तिथि पर, दोनों या दोनों पक्षों ने यथोचित रूप से माना कि विवाह वैध था।

शून्य विवाह के अन्तर्गत पति या पत्नी दोनो मे से कोई भी पहले से शादी-शुदा है और फिर शादी कर रहा है, जबकि पूर्व मे की हुयी शादी अस्तित्व मे है, तो दूसरा विवाह, शून्य विवाह होगा एवंम् उसका दूसरा विवाह भी दण्डनीय होगा, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत 7 वर्ष तक के कारावास और जुर्माने की सज़ा है ।

शून्य विवाह  के अन्तर्गत पति और पत्नी दोनो मे से प्रत्येक को शासित करने वाली रूढि या प्रथा से अनुज्ञात न हो और दोनो पक्षकारो प्रतिनिष्ध नातेदारी के अन्तर्गत न आते हो । अगर कोई पक्षकार पिता की पांच पीढी और माता की तीन पीढी के अन्तर्गत नातेदारी स्पष्ट होती है, तब भी विवाह शून्य होगा, अगर पक्षकार के परिवार मे कोई रूढि प्रथा न हो ।

शून्यकरणीय विवाह (Voidable marriages)- यह विवाह भी एक शून्य विवाह ही होता है, जो कानूनी रूप से वैधता के निर्णय द्वारा रद्द किए जाने तक वैध है। इसके बाद फैसला सुनाए जाने के रद्द कर दिया जाता है ।

शून्य विवाह ही शून्यकरणीय विवाह  होता है केवल फर्क सिर्फ इतना सा होता है कि शून्य विवाह अगर कोई पक्षकार व्दि-विवाह करता है तो वह दूसरा विवाह शून्य होगा और पक्षकार मे पति अथवा पत्नी कोई मानसिक स्थिति सामान्य नही है तो उनके व्दारा दी गयी सहमति स्वीकारी नही जा सकती है, उनका विवाह भी शून्य होगा । बस फर्क मात्र इतना है कि विवाह को शून्य घोषित करने के लिए एक पक्ष व्दारा अदालत में आवेदन किए जाने के बाद ही शून्य विवाह अमान्य होगा।

विवाह शून्य होने के लिए निम्नलिखित आधार हैं-

  • शादियां जो ठीक से नहीं की गई हैं- उस विवाह सास्थां व्दारा वैध तरीके से विवाह न होना और दोनो पक्षकारो के कम से कम परिवार के दो सदस्यो गवाहों की उपस्थिति न होने पर विवाह शून्य कहलायेगा ।

  • करीबी रिश्तेदारों के बीच विवाह- जैसे दोनो पक्षकार आपसी कोई परिवार का सदस्य अथवा सापिण्ड परिवार मे न हो ।

  • कम उम्र की शादी- लडके की उम्र 21 वर्ष एवंम् लडकी की उम्र 18 वर्ष होना अनिवार्य है वरना विवाह शून्य कहलायेगा ।

  • विवाह को अकारण नहीं किया गया है क्योंकि दोनों पक्ष ऐसा करने में असमर्थ हैं जैसे- मानसिक विकार के कारण शादी के लिए वैध रूप से सहमति नहीं दी गयी, तब भी विवाह शून्य है ।

  • शादी के समय, एक पक्ष यौन संचारित रोग के एक संक्रमित रूप से पीड़ित था अथवा किसी ऐसी गम्भीर बीमारी से पीड़ित था ।

  • शादी के समय पत्नी अपने पति के अलावा किसी और से गर्भवती थी।

हिन्दू विवाह अधिनियम के अन्तर्गत हमारे हिन्दू समाज मे हिन्दू विवाह को पवित्र सम्बन्ध माना गया है किन्तु कई विवाह हमारे रीति-रिवाजो के विपरीत हो जाते है, जिन्हे हिन्दू विवाह की धारा-11 एवंम् 12 के अन्तर्गत आमान्य घोषित किया गया है । इन्ही विवाहो को शून्य विवाह एवंम् शून्यकरणीय विवाह कहते है ।

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