दण्ड क्या है, कितने प्रकार से दण्ड हमारे संविधान में दिया जाता है आइये जानते है?

नमस्कार दोस्तों, आज हम दण्ड के विषय मे पूर्ण जानकारी देंगे। क्या आप जानते है दण्ड क्या है और हमारे संविधान मे दण्ड कितने प्रकार से दिया जाता है, आज हम इस लेख मे जानेंगे दण्ड किसे कहते है और कितने प्रकार से हमारे संविधान मे दिया जाता है।

दण्ड (Punishments)

हमारे समाज के विकास एवंम् वृद्धि हेतु थोडी शक्ति होना बहुत आवश्यक है राज्य और छत्र की शक्ति और संप्रभुता का द्योतक और किसी अपराधी को उसके अपराध के निमित्त दी गयी सजा को दण्ड कहते हैं।  भारतीय संविधान मे दंड कितने प्रकार दिया जाना होगा।

दण्ड का अर्थ

जब से मनुष्य का जन्म पृथ्वी पर हुआ है, तब से दण्ड की व्यावस्था हमारे समाज मे रही है, केवल समय बदलते हुये, दण्ड का स्वारूप भी बदला गया है, अर्थात् हमारे समाज मे दण्ड का महत्वपूर्ण बताया गया है, क्योकि समाज मे यदि कोई व्यक्ति अपराध करता है, तो वह दण़्ड का भागीदार होगा । अपराध रोकने व भय उत्पन्न करने के लिये दण्ड का प्रवाधान हमारे भारतीय संविधान मे दिया गया है ।

अपराधी के अपराध की मात्रा, प्रकृति व गम्भीरता पर निर्भर करता है कि व्यक्ति को कौन सा अपराध करता है और उस पर कौन सा दण्ड मिलेगा । हम में से बहुत लोगो के मन में सवाल उठता होगा, कि कोई अपराधी, अगर अपराध करता है, तो कोर्ट उसे किस किस तरह से दंडित कर सकती है और हमारे संविधान में दण्ड कितने प्रकार से मिलता है ।

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 53 में दण्ड के प्रकारों को परिभाषित किया गया है । दण्ड अपराधी के अपराध की गम्भीरता के आधार पर ही हमारे संविधान प्रावधान करती है ।

दण्ड के प्रकार

किसी अपराधी को भारतीय दण्ड संहिता के अंतर्गत अपराध के आधार पर ही दण्ड निर्भर करता है, जो निम्न प्रकार है –

हला – मृत्यु

दूसरा – आजीवन कारावास

तीसरा – [अधिनियम सं0 17 सन् 1949 द्वारा निकाला गया]

चौथा – कारावास, जो दो भांति का है, अर्थात्

1- कठिन, मतलब कठोर श्रम कें साथ

2- सादा कारावास

पांचवा – संपत्ति का समपहरण (सम्पत्ति की कुर्की)

छठा – जुर्माना

साधारण कारावास- का अर्थ किसी व्यक्ति से, जिसे साधारण कारावास को दंडित किया गया है, कारागार में कार्य करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती, जब तक कि वह व्यक्ति स्वयं कार्य करने की इच्छा नहीं करता अर्थात् वह व्यक्ति कारागार मे मन चाहा कार्य कर सकता है।।

कठिन कारावास– का अर्थ किसी व्यक्ति से, जिसे जिसे साधारण कारावास को दंडित किया गया है, कारागार में विधि व्दारा कठोर श्रम करने की अपेक्षा की जाती, अर्थात् उस व्यक्ति को कारागार में कार्य करने के लिए बाध्य होगा, वह व्यक्ति स्वयं कार्य का चुनाव नही कर सकेगा, जो न्यायालय व्दारा दण्ड के तहत ही कार्य करेगा । ।

साधारण कारावास एवंम् कठिन कारावास मे अन्तर- जो व्यक्ति कारागार मे साधारण कारावास की सजा भुगत रहा है, वह व्यक्ति को कार्य का चुनाव स्वंय मिलता है, लेकिन जिसे कठिन कारावास की सजा प्राप्त हुयी है, वह व्यक्ति न्यायालय से प्राप्त कार्य के अनुसार ही कार्य कर सकेगा, जबकि मजदूरी दोनो को सजा पूर्ण होने पर मिलेगी।

हम में से बहुत से लोगों के मन में एक सवाल आता होगा, कि जब कोई व्यक्ति कारावास में लंबे समय के लिए जाता है, तो वहां क्या काम भी कराया जाता है ? क्या मजदूरी मिलती है ?

सत्यता में किसी व्यक्ति को कारागार में लंबे समय के लिए दंडित किया जाता है, तब व्यक्ति के अपराध के ही अनुसार न्यायालय में उपरोक्त दण्ड के प्रकारों में से दंडित किया जाएगा, उसके उपरान्त अगर व्यक्ति को सादा कारावास दिया गया है, तो भी व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कार्य करके पैसा कमा सकता है और दण्ड पूर्ण हो जाने पर उसे, उसकी मजदूरी मिलेगी । कठोर कारावास से दंडित व्यक्ति न्यायालय से प्राप्त कार्य के अनुसार ही कार्य कर सकेगा, कारागार में अभिरक्षा के दौरान, उनके व्दारा किए गए कार्यों के लिए मजदूरी के लिए हकदार होगा । साथ ही सजा पूर्ण होने पर ही वह अपनी मजदूरी पाने का अधिकारी भी होगा ।

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